मरीजों की कतार में वो बुढ़िया
लिए चेहरे पे उम्र से ज़्यादा झुरिया
दिल में बेटी के खोने का ग़म
अकेले , थकी हुई , निराश और सुनाई देता था कम
जांच पड़ताल व इलाज़ के साथ
दिया जब उसे ऐसा मशविरा
“सुनने की मशीन लगवाओ , अब और ऐसे सुनाई नहीं देगा। “
हैरान हुआ मैं जब वो मुसकुराई कुछ इस तरह
“सुनाई तो मुझे बचपन से नहीं देता ,
औरत ज़ात हूँ सुनना मना है बेटा “।
“गर्भ में जो माँ की भगवान से ख्वाहिश सुनी होती
तो शायद इस दुनिया में शर्म से ही ना आती
अपने जन्मे पर जो रिश्तेदारों के ताने सुने होते
तो कट जाती सारी ज़िंदगी मेरे भाग सोते सोते”
“न सुनी मैंने
पढ़ाने में बाप ने कोताही की कहानी जो बुनी
या शादी में दहेज की जो मांग राखी गयी
सुन कर इन कानों से फिर भी
बिक गयी, कर सब अनसुनी
औरत ज़ात हूँ सुनना मना है बेटा “।
“नव ब्याहता होकर जो सास की खरी खोटी सुनती
तो कैसे अपने बच्चों का भविष्य इन हाथों से बुनती
फिर उम्र के बढ़ते पड़ाव में
बढ़ते बच्चों की आसमान से ऊंची ख्वाहिशें
घर के खर्चे में करती थी सबसे कटौती की गुज़ारिशें
पति का भी ऐसे हालातों में अक्सर मुंह बना है
औरत ज़ात हूँ बेटा सुनना मना है ।
“एक औरत के होते हैं ये कान
सिर्फ अपनी माँ और बेटियो का सुनने को हाल
माँ चली गयी , बेटी भी अब छूट गई
सुनने की क्या , अब तो जीने की चाह भी टूट गई । “
“इस देश में औरत की , बेटा
दुतरफा लड़ाई है,
जीने के हक के साथ न सुनने का हक
भी मांगती आई है
क्या तुम्हारी साइन्स ने कोई
हमारे लिए न सुनने की मशीन भी बनाई है ” ।